Bhool Chuk Maaf Review: राजकुमार राव और वामीका गब्बी की नई फिल्म “भूल चुक माफ़” देखने में अजीब सी लगती है। फिल्म की कहानी गोल-गोल घूमती रहती है, लेकिन समझ नहीं आता कि आखिर इसका मकसद क्या है। फिल्म को देखकर ऐसा लगता है जैसे एक ही सीन बार-बार दिखाया जा रहा हो।
फिल्म में टाइम-लूप दिखाया गया है यानी एक लड़के की ज़िंदगी एक ही दिन में फँसी रह जाती है। लेकिन ये बात इतनी उलझी हुई है कि ऑडियंस खुद सोच में पड़ जाते हैं – ये हो क्या रहा है? यह फिल्म ‘भूल चुक माफ़’ आज 23 मई को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है।इस फिल्म के निर्देशक करण शर्मा हैं और इस फिल्म को Maddock Films ने produce किया है। यह एक फैमिली ड्रामा है। अगर आप वीकेंड पर फैमिली या दोस्तों के साथ फिल्म देखने का सोच रहे हैं, तो ये रिव्यू आपके लिए है।
क्या है Bhool Chuk Maaf की कहानी?

ये कहानी है बनारस के एक लड़के रंजन तिवारी (राजकुमार राव) की। रंजन को अपनी गर्लफ्रेंड तितली मिश्रा (वामीका गब्बी) से शादी करनी है। लेकिन उसके पास कोई नौकरी नहीं है। तितली के पापा रंजन से कहते हैं कि दो महीने के अंदर नौकरी ढूंढो, वरना शादी भूल जाओ।
रंजन और उसका दोस्त मामा (इष्टियाक़ खान) एक आदमी से मिलते हैं जो पैसे लेकर नौकरी दिलाने का वादा करता है। लेकिन वो पैसे लेकर भाग जाता है। बहुत मुश्किलों के बाद रंजन की शादी की तारीख तय होती है। सब खुश हैं, लेकिन शादी के एक दिन पहले कुछ अजीब हो जाता है।
रंजन हर सुबह उठता है और फिर से उसी “हल्दी” वाले दिन में पहुंच जाता है। हर बार वही दिन शुरू हो जाता है। वो उस टाइम-लूप में फँस जाता है और बाहर नहीं निकल पाता।
किरदार कैसे हैं?

राजकुमार राव हमेशा की तरह अच्छा काम करते हैं। वो रंजन तिवारी के रोल में फिट बैठते हैं। उनका बनारसी अंदाज़ और बोलने का तरीका अच्छा लगता है।वामीका गब्बी का किरदार भी मजबूत है। वो तितली के रोल में है – एक ऐसी लड़की जो अपने हक के लिए लड़ना जानती है।सीमा पाहवा, रंजन की माँ के रोल में हैं। वो अचार बेचती हैं और अपने घर को संभालती हैं। उनका अभिनय शानदार है।रघुवीर यादव, रंजन के पापा बने हैं। वो ज़्यादातर टाइम छत पर बैठे रहते हैं और दोस्तों के साथ मस्ती करते रहते हैं।संजय मिश्रा और इष्टियाक़ खान जैसे अच्छे कलाकार भी फिल्म में हैं, लेकिन उन्हें ज़्यादा करने का मौका नहीं मिलता।
फिल्म की परेशानियाँ
1. कहानी समझ में नहीं आती – फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत उलझी हुई है। टाइम-लूप को अच्छे से नहीं दिखाया गया है। दर्शक कन्फ्यूज़ हो जाते हैं।
2. एक ही बात बार-बार – हर बार वही दिन, वही हल्दी, वही सीन। फिल्म देखकर बोरियत होती है।
3. मज़ाक में मज़ा नहीं है – फिल्म में कॉमेडी डालने की कोशिश की गई है, लेकिन हँसी नहीं आती।
4. भावनाएँ भी असर नहीं छोड़तीं – फिल्म में माँ-बेटे के रिश्ते, प्यार और समाज की बातें भी हैं, लेकिन वो दिल को छूती नहीं।
लोकेशन और म्यूज़िक

फिल्म “भूल चुक माफ़” बनारस को बहुत ही खूबसूरती से दिखाया गया है। घाट, गली, मंदिर – सब कुछ असली लगता है। कैमरा वर्क अच्छा है। लेकिन जब कहानी में दम नहीं हो, तो अच्छे लोकेशन भी काम नहीं आते।
फिल्म में एक बैचलर पार्टी वाला सीन है जिसमें एक आइटम सॉन्ग दिखाया गया है, लेकिन वो भी ज़बरदस्ती जोड़ा गया लगता है।
क्या कुछ अच्छा भी है?
राजकुमार राव का अभिनय अच्छा है।वामीका गब्बी का किरदार दमदार है।सीमा पाहवा और संजय मिश्रा का अभिनय भी अच्छा है।बनारस की लोकेशन बहुत सुंदर है।
फिल्म क्यों नहीं चल पाई?

फिल्म “भूल चुक माफ़” का सबसे बड़ा कमजोर पक्ष है – उसकी कहानी। टाइम-लूप का आइडिया तो नया था, लेकिन उसे अच्छे से लिखा नहीं गया।फिल्म में बहुत कुछ डालने की कोशिश की गई – कॉमेडी, इमोशन, धर्म, प्यार, समाज की बातें – लेकिन सब कुछ मिला कर फिल्म बिखर गई।फिल्म में जो “भूल चुक” हुई है, वो माफ़ करना थोड़ा मुश्किल है।
अगर आप राजकुमार राव के फैन हैं, तो उनके लिए ये फिल्म “भूल चुक माफ़” एक बार देखी जा सकती है। लेकिन अगर आप मज़ेदार और समझ आने वाली कहानी चाहते हैं, तो ये फिल्म आपको पसंद नहीं आएगी।
“भूल चुक माफ़” एक ऐसा सपना है जो पूरा नहीं हो पाता। एक ऐसी शादी है जो कभी होती ही नहीं। और एक ऐसी फिल्म है जो कुछ नया करने की कोशिश तो करती है, लेकिन खुद ही अपनी राह से भटक जाती है।
रेटिंग: 2/5
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