Junk Food: कैसे 5 मिनट में Junk Food के विज्ञापन बच्चों के सेहत के लिए बन रहे हैं खतरनाक

Junk Food Advertising: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे हर दिन तरह-तरह के विज्ञापनों से घिरे रहते हैं। खासकर टीवी, मोबाइल और सोशल मीडिया पर आने वाले चमकदार जंक फूड के विज्ञापन उनकी पसंद और खानपान की आदतों पर तेजी से असर कर रहे हैं। आलकल ये देखा जा रहा है कि सिर्फ 5 मिनट का जंक फूड विज्ञापन भी बच्चों को दिनभर में ज्यादा कैलोरी लेने के लिए motivate कर सकता है। यह बात जितनी सामान्य लगती है, असल में उतनी ही गंभीर है।

कैसे असर डालते हैं विज्ञापन?

Junk Food Advertising: ज्यादातर जंक फूड—जैसे बर्गर, पिज्जा, फ्रेंच फ्राइज, सोडा ड्रिंक्स—ज्यादा मात्रा में फैट, शुगर और नमक से भरपूर होते हैं। जब इनका विज्ञापन रंग-बिरंगे और अट्रैक्टिव तरीके से दिखाया जाता है, तो यह न सिर्फ ध्यान खींचता है बल्कि कन्सूमर खासकर बच्चे और किशोर मानसिक रूप से इनकी ओर अट्रैक्ट हो जाते हैं।

रिपोर्ट में यह पाया गया कि 7 से 15 वर्ष की उम्र के बच्चे और किशोर यदि सिर्फ 5 मिनट तक भी जंक फूड का विज्ञापन देख लें, तो वे average 130 किलो कैलोरी ज्यादा खा सकते हैं। यह कैलोरी मात्रा रोजाना बढ़ती है और धीरे-धीरे मोटापे, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारियों की ओर ले जाती है।

जंक फूड की मार्केटिंग: एक चालाक रणनीति

फूड कंपनियों की मार्केटिंग बेहद योजनाबद्ध होती हैं। वे बच्चों के पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर, चटपटे स्लोगन और धमाकेदार ऑफर्स के जरिए विज्ञापन को ज्यादा लुभावना बनाते हैं। बच्चों को ये विज्ञापन मजेदार लगते हैं, और वे इसके प्रभाव में आकर उसे खाने की मांग करते हैं

सोशल मीडिया पर छोटे-छोटे वीडियो और रील्स के रूप में भी जंक फूड को “कूल” और “ट्रेंडी” दिखाया जाता है, जिससे बच्चों के बीच यह एक स्टेटस सिंबल बन जाता है। नतीजा यह होता है कि वे रियल नूट्रिशन से दूर होकर फास्ट फूड को अपनी डाइट का हिस्सा बना लेते हैं।

बदलता लाइफस्टाइल और बिगड़ती आदतें

बच्चों और युवाओं की डेली लाइफ अब पहले जैसी नहीं रही। खेलकूद की जगह अब स्क्रीन टाइम ने ले ली है। स्कूल से लौटने के बाद अधिकतर बच्चे टीवी, मोबाइल या लैपटॉप पर व्यस्त रहते हैं। इन्हीं प्लेटफॉर्म्स पर उन्हें जंक फूड के विज्ञापन लगातार दिखाई देते हैं, जिससे उनके खाने की पसंद भी प्रभावित होती है।

खास बात यह है कि जिन बच्चों का एक्सपोजर इन विज्ञापनों से अधिक होता है, वे अक्सर बिना भूख के भी खाने की इच्छा जाहिर करते हैं। यह आदत धीरे-धीरे बिंग ईटिंग (एक साथ बहुत ज्यादा खाना) की ओर ले जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक है।

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स्वास्थ्य पर क्या असर होता है?

शोध में यह भी पाया गया है कि जिन बच्चों की डाइट में फैट, नमक और शुगर की मात्रा अधिक होती है, उनका वजन बढ़ने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। साथ ही यह भी देखा गया कि ऐसे बच्चे जो विज्ञापनों से ज्यादा अट्रैक्ट होते हैं, वे अपने खानपान को लेकर सजग नहीं रहते। इसका सीधा असर उनकी लंबे समय की सेहत पर पड़ता है।

मोटापा, कोलेस्ट्रॉल, हॉर्मोनल बदलाव, एकाग्रता में कमी, थकान और भावनात्मक असंतुलन जैसी समस्याएं आज कम उम्र में ही बच्चों में देखने को मिल रही हैं, और इसके पीछे एक बड़ी वजह है अनहेल्दी फूड और उसका आकर्षक प्रचार।

क्या हो सकता है समाधान?

इस सिचूऐशन को सुधारने के लिए पेरेंट्स, स्कूलों और सरकार को मिलकर काम करने की ज़रूरत है:

मीडिया लिटरेसी सिखाएं: बच्चों को यह समझाना ज़रूरी है कि हर विज्ञापन में जो दिखाया जाता है, वह हकीकत नहीं होता।

घरेलू विकल्प बढ़ाएं: हेल्दी स्नैक्स को मजेदार तरीके से परोसें ताकि बच्चे जंक फूड की ओर न जाएं। जंक फूड के बदले बच्चों को दूध, दही और अंडे (प्रोटीन से भरपूर) आदि खिलाएं।

स्कूल में जागरूकता अभियान चलाएं: खानपान के प्रभावों को लेकर बच्चों को शिक्षित करना बेहद ज़रूरी है।

विज्ञापन नियमों में बदलाव: सरकार को चाहिए कि वह बच्चों को लक्षित कर बनाए जा रहे हाई फैट-शुगर-सॉल्ट (HFSS) फूड्स के विज्ञापनों पर सख्ती से नियंत्रण लगाए।

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